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Aadmi Swarg Mein
Author: Vishnu Nagar

Publisher: Rajkamal Prakashan
ISBN: 9788126726400
Pages: 144
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यह धर्म-कर्म के बल पर अन्तत: स्वर्ग पहुँच गए आदमी की कथा है। वही धर्म-कर्म जिससे हम सब परिचित हैं, यानि अपने स्वार्थों की अमानवीय होने की हद तक हिफाजत करते हुए पूजा-पाठ का अटूट पालन; आदमी भी वही जिसे हमने अपनी 'सबसे प्राचीन सभ्यता' के काई-शैवाल को छानकर निकाला है, यानि अन्तर्तम से निहायत धर्मविरोधी एक 'धार्मिक' और ईश्वर-आस्था को भौतिक प्राप्तियों के लिए इस्तेमाल करनेवाला एक चालाक प्राणी। और स्वर्ग भी वही जिसकी कामना हिन्दू धर्म के चार पुरुषार्थों में गिनी जाती है। इस उपन्यास के बहाने विष्णु नागर ने स्वर्ग, मनुष्य और धर्म—इन तीनों की व्याख्या की है। साथ में उस समाज की भी जिसे हमने नरक के सतत भय, ईश्वर की सर्वव्यापी मौजूदगी और तैंतीस करोड़ देवताओं की निरन्तर निगहबानी के बावजूद सफलतापूर्वक रचा। एक स्वभक्षी समाज। उपन्यास के नायक गेंदमल जी स्वर्ग में भी उसी समाज को ढूँढने और बनाने की कोशिश करते हैं और भारतवर्ष की महान परम्पराओं की लाज रखते हुए बनाने में सफल भी होते हैं। यही नहीं, वहाँ के अधिपति का पद प्राप्त करते हैं। विष्णु नागर ने कवि के रूप में सामाजिक और मानवीय सरोकारों की जो सहज व्याप्ति संभव की है, वही उनकी व्यंग्य कथाओं भी अन्यतम विषेषता है। इस उपन्यास में उसे उन्होंने एक बड़े कैनवस पर साधा है। धर्म और ईष्वर, और इनकी सामाजिक राजनीति हमेषा विष्णु जी का प्रिय विषय रही है। इस उपन्यास में उन्होंने इसका पूरा पाठ पेष किया है।