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Badlon Ke Ghere
Author: Krishna Sobti

Publisher: Rajkamal Prakashan
ISBN: 9788126712465
Pages: 260
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बादलों के घेरे आधुनिक हिन्दी कथा-जगत में अपने विशिष्ट लेखन के लिए जानी जानेवाली वरिष्ठ लेखिका कृष्णा सोबती की प्रारम्भिक कहानियाँ इस पुस्तक में संकलित हैं। शब्दों की आत्मा से साक्षात्कार करने वाली कृष्णा सोबती ने अपनी रचना-यात्रा के हर पड़ाव पर किसी-न-किसी सुखद विस्मय से हिन्दी-जगत को रू-ब-रू कराया है। ये कहानियाँ कथ्य और शिल्प, दोनों दृष्टियों से कृष्णा जी के रचनात्मक वैविध्य को रेखांकित करती हैं। इनमें जीवन के विविध रंग और चेहरे अपनी जीवन्त उपस्थिति से समकालीन समाज के सच को प्रकट करते हैं। समय का सच इन कहानियों में इतनी व्यापकता के साथ अभिव्यक्त हुआ है कि आज के बदलते परिवेश में भी इनकी प्रासंगिकता बनी हुई है। अनुभव की तटस्थता और सामाजिक परिवर्तन के द्वंद्व से उपजी ये कहानियाँ अपने समय और समाज को जिस आन्तरिकता और अंतरंगता से रेखांकित करती हैं वह निश्चय ही दुर्लभ है। बादलों के घेरे आधुनिक हिन्दी कथा-जगत में अपने विशिष्ट लेखन के लिए जानी जानेवाली वरिष्ठ लेखिका कृष्णा सोबती की प्रारम्भिक कहानियाँ इस पुस्तक में संकलित हैं। शब्दों की आत्मा से साक्षात्कार करने वाली कृष्णा सोबती ने अपनी रचना-यात्रा के हर पड़ाव पर किसी-न-किसी सुखद विस्मय से हिन्दी-जगत को रू-ब-रू कराया है। ये कहानियाँ कथ्य और शिल्प, दोनों दृष्टियों से कृष्णा जी के रचनात्मक वैविध्य को रेखांकित करती हैं। इनमें जीवन के विविध रंग और चेहरे अपनी जीवन्त उपस्थिति से समकालीन समाज के सच को प्रकट करते हैं। समय का सच इन कहानियों में इतनी व्यापकता के साथ अभिव्यक्त हुआ है कि आज के बदलते परिवेश में भी इनकी प्रासंगिकता बनी हुई है। अनुभव की तटस्थता और सामाजिक परिवर्तन के द्वंद्व से उपजी ये कहानियाँ अपने समय और समाज को जिस आन्तरिकता और अंतरंगता से रेखांकित करती हैं वह निश्चय ही दुर्लभ है।
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