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Sooraj Ka Satnva Ghoda
Author: Dharamveer Bharti

Publisher: ‎ Gyanpith Prakashan
ISBN: B01MROMLW0
Pages: 250
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सूरज का सातवाँ घोड़ा धर्मवीर भारती का प्रसिद्ध उपन्यास है। धर्मवीर भारती की इस लघु औपन्यासिक रचना में हितोपदेश और पंचतंत्रवाली शैली में ७ दोपहरी में कही गई कहानियों के रूप में एक उपन्यास निर्मित किया गया है। यह पुस्तक के रूप में भारतीय ज्ञानपीठ से

इसे लघु उपन्यास की संज्ञा दी गयी है। कथानक की बुनावट उपन्यास की विषय–वस्तु को नए आयाम प्रदान करती है। ‘सूरज का सातवॉं घोड़ा’ भी भारत-ईरान की प्राचीन शैलियों से प्रभावित माना जाता है। लेकिन, पुरानी किस्सागोई का यह तरीका –अलिफलैला, पंचतंत्र, दशकुमारचरित अथवा कथासरित्सागर – ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ की ऊपरी त्वचा मात्र है, इसे कथानक का बुनियादी ढाँचा नहीं माना जा सकता। एक दूसरी शैली भी इसमें परिलक्षित की जा सकती है- वह है, वीरगाथाओं या अन्य महाकाव्यों जैसी शैली, जिसमें रचनाकार अपनी रचनाओं का रचयिता ही नहीं वरन् घटनाओं के बीच स्वयं भी उपस्थित है। वह भोक्ता और रचयिता दोनों है। इस प्रकार रचना तटस्थ होने, निजी अनुभूति को सार्वजनिक अनुभव में तब्दील करने का दायित्व बन जाती है। ‘पृथ्वीराज रासो’ के रचयिता चंदवरदायी इसके महत्त्वपूर्ण् चरित्र भी हैं, ठीक उसी तरह जैसे वाल्मीकि और तुलसी खुद को अपनी रचनाओं में उपस्थित कर देते हैं या कि संजय महाभारत के घटनाचक्र में मौजूद है।